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मैं इंतज़ार करके लौट आऊंगा
तुम बस कहीं बुला लिया करो
✒Mahi Kumar
उसका चेहरा बनकर एक सवाल रह गया।
कोई रंग ऐसा नहीं, जितना रंगीन ख़याल रह गया।
✒Mahi Kumar
तेरे संग गुज़ारे, पल नहीं बितते।
मेरे आज से, तेरे कल नहीं बितते।।
✒Mahi Kumar
नशा-ए-मोहब्बत, मुझपर बेअसर सी रही
तुझसे बिछड़कर, ज़िन्दगी बेहतर सी रही
✒Mahi Kumar
नींद, सपने, सिलवटें, सब खो गयी।
बिस्तर तन्हाई में रो पड़ा, चादरें सिसक कर सो गयी
✒Mahi Kumar
हद्द -ए -सफर, कभी रास नहीं आती,
मैं चलता ही रहता हूँ, मगर मंज़िले पास नहीं आती।
गुजरता हूँ हर रोज़, एक नयी गली एक नए शहर से,
ठहराता हूँ चंद लम्हात, घर बसाने की बात नहीं आती।
शाम के सूनेपन से लेकर, रात की तन्हाई तक,
ढूंढता हूँ बस तुझे ही, हकीकत से परछाई तक।
देख एक मैं हूँ, जो तनहा चल नहीं पाता,
देख एक तू है, जो कभी साथ नहीं आती।
हद्द -ए -सफर, कभी रास नहीं आती,
मैं चलता ही रहता हूँ, मगर मंज़िले पास नहीं आती।
✒Mahi Kumar
तेरे जाने के बाद, गाँव की नदी भी सूख गयी
जुदा देखने को, दो किनारे भी ना रहे
✒Mahi Kumar
मुझसे मिलने आना, उसके लिए जुदाई थी।
उसकी मोहब्बत में, कितनी बेवफाई थी।।
✒Mahi Kumar
जिस पर गुरुर था, वो ही गुजर गया
जो आईने में नहीं है, वो किधर गया
✒Mahi Kumar
मैं शायरी का दौर हूँ, ग़ज़ल की मैं भोर हूँ।
मैं सागरो का शोर हूँ, मैं खुद में कोई और हूँ।
✒Mahi Kumar
Writer Mahi Kumar
क्यों उठाते हो रुख से पर्दा
क्यों मेरी नियत खराब करते हो
तहलील होकर मेरी जिन्दगी मे यूँ
क्यों मुझे पानी से शराब करते हो
✒Mahi Kumar
तहलील (घुलना)
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